दर्द भरी सायरी | आखो से आशु आ जाये | सादगी इतनी भी नहीं है , अब बाकि मुझ में
-सादगी इतनी भी नहीं है
अब बाकि मुझ में
की तू वक्त गुजरे और मैं
मोहब्बत समझू
-ना ढूंढो उन एहसासो को किताबी पन्नो में ,
जो दिल पर गुजरती है ,
वही कागजो पर उतरा है |
-अब आशु नहीं आते ,
अपने हालत पर
बस तरस आता है ,
अपनर आप पर |
- हाँ सच ये की सूखे होंठो से ही होती है ,
मीठी बाते , जो प्यास बुझ जाये , तो
अल्फाज और इंसान दोनों ही
बदल जाते है |
-जान तो बेवफा होती है ,
जिस्म को कब छोड़ जाये
खबर किसे होती है |
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